*सिंधु संस्कृती से जुडा है ये समाज* *History of banjara*
|बंजारा समाज का इतिहास
*सिंधु संस्कृती से जुडा है ये समाज* *History of banjara*
भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाजका वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसीतरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग केसर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांवसेवागड के नाम से जाना जाता है। भौगोलीक और ऐतिहासिक जानकारी होने के कारण गोर बंजारा समाज कावास्तव्य प्रदेश की सीमाओं पे ज्यादातर होता था इसस्थिथीयों का फायदा उन्हें व्यापार में मिलता था और संघटन की दृष्टी से भी लाभदायक था इसी बात से उनके दुरदृष्टीका अंदाज होता है। सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़ेव्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक केरुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायकने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफपता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायकके विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल,उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन बढ़ता जा रहा था और भारतीय राजाओं की व्यवस्था कमजोर होती जा रही थी। अंग्रेजी हुकूमत का गोर बंजारा व्यापारी पर राजाओं को रसद पहुंचाने के खिलाफ दबाव बढ़ते जा रहा था। और अंग्रेज प्रभावित इलाकों में गोर बंजारा व्यापारीयों से कर वसुली का फर्माण निकाले जा रहे थे जो की, गोर बंजारा के व्यापारी नियमों के खिलाफ था।इस कर वसुली के खिलाफ प्रस्ताव लेकर सेवालाल अपने सभी संघ नायकों के साथ निजाम से मिलने गये। अंग्रेजी हुकूमत के डर से निजाम ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसके मद्देनजर सेवालाल ने निजाम के विरुद्ध युद्ध का ऐलान किया। फिर (बंजारा हिल) हैद्राबाद में युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप निजाम ने सेवालाल की सभी शर्ते मंजुर की और भारत केअन्य राज्यों के करप्रणाली के लिए दिल्ली के बादशाह गुलाम खान को मिलने की सलाह दी। सेवालाल ने निजाम की सलाह मान ली और निजाम की ओर से दिये हुए सम्मान को स्वीकार किया। सम्मान के तौर पर निजाम ने ताम्रपत्र, तलवार और भेटवस्तू दी। पोहरागढ मंदिर (महाराष्ट्र राज्य) में आज भी ये भेटवस्तुयाँ मौजूद है। दिल्ली के बादशाह गुलाम खान ने इस प्रस्ताव को नामंजुर किया, परिणाम स्वरुप सेवालाल ने युद्ध का ऐलान कीया, गुलाम खान के 25000 सैनिकों का मुकाबला सेवालाल के 900 यौद्धाओं ने किया। गुलाम खान की भारी हार हुई इतिहासकारों ने इस युद्ध का जिक्र कभी नहीं किया। गुलाम खान ने करप्रणाली को माफ करने को मंजुर किया। व्यापार दृष्टीकोन से सेवालाल की ये बहुत बड़ी राजनैतिक जीत थी। इस जीत के चलते सेवालाल का नाम पुरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हुआ। लाहोर के गौरबंजारा (ट्रेडर्स) ने सेवालाल को सम्मानित किया। जयपुर (राजस्थान) के बंजारा व्यापारी और बहुजन लोगों की पुकार पर सेवालाल ने भुमिया नामक दहशतग्रस्त का शिरच्छेद किया और राजस्थानवासियों को भुमिया से मुक्ती दिलाई। आज भी इसी निशानी के तौरपर जयपुर में सवाई मानसिंग हॉस्पीटल में सेवालाल का मंदीर है। दिल्लीस्थित रायसिना हिल लकीशों बंजारा ने सेवालाल के स्वागत में बनाई हुई छत्री नेहरु प्लॅनिटोरियम, नई दिल्ली में मौजूद है। इसी तरह मुंबई के पास सेवानामक गांव में जहापर अभी जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट है वहां पर 17 वीं शताब्दी में सेवालाल पोर्ट हुआ करता था। वैसे ही धरमतर (सेवालाल के सहयोगी) नाम का पोर्ट रायगड जिल्हे में पेण के पास मौजुद है। उसी तरह मुंबई स्थित भाऊचा भी ना होते हुए वो सेवाभाया का धक्का है। इस जगह पर पोर्तुगीज का जहाज फस गया था उसे सेवालाल ने निकाला, फलस्वरुप उन्हें मोतीयों की माला (इटालियन पर्ल्स) दिया गया, इसी वजह से सेवालाल मोतीवाळो के नाम से भी जाने जाते है। रायगड जिल्हे में पेण के पास गागोदे नामक गांव में सेवालाल का व्यापारी केंद्र था वहां पर आज भी उनके नाम का मंदीर मौजूद है। सेवालाल बहुत बड़े व्यापारी, यौद्धा, संगटक, अर्थतज्ञ तो थे ही लेकिन उसके साथ वे बहुत बड़े समाजसुधारक थे। सेवालाल की ताकत और ग्यान का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो भविष्यवाणीयां सेवालालने भारत की सामाजिक और आर्थिक और नैसर्गित स्थिती को लेकर कहीं थी वो सब बाते आज 250 साल बाद सच हो रही है।: कुछ वर्षो में विलुप्त हो जायेगी बंजारा संस्कृति – बंजारा समाज अपनी संस्कृति ,,अपना समाज ,,अपनी बस्ती ,,,भाषाऔर पहनावे…..!
#संत_सेवालाल_महाराज
Tag: Gordharm, Gor Dharm, Gordharm religion, Jai Sevalal, Banjara, Lamani, Labana, Banjara Live TV
#जय_सेवालाल
ram ram bhi ge
भौत बढिया जाणकारी मीली
##जय सेवालाल##
Sir you have described so so many historical truth but you have not given any proof . For gor history there is no written proof . But gor boli is the mine of munga ratna hira moti panna .she cries cloudy and says world wide gor history. How just I am publishing my gor granth ‘ gor boli shabdkosh arthat godhan cha shodh’ the granth is written with challange to through out world gor. Each and every world is described with natural mining. If doubt call me 8805537377 .pl don’t give fake writing
http://[email protected]
पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया।
Is this true, What is the source of this facg